VINDHYESHWARI MATA JI ARTI IN ALL LANGUAGES

ARTI IN ASSAMESE

|| শ্ৰী বিন্ধ্যেশ্বৰী মাতা জী কি আৰতি ||

 

মোৰ দেৱী, অৰোটিক শুনিব, আপোনাক পাৰ নকৰিবলৈ।

পেন এৰেকাণুট পতাকা নাৰিকল, লে টেৰি নৈবেদ্য।

 

জয় বিন্ধ্যেশ্বৰী মাতা ||

 

সুভা চোলীয়ে আপোনাৰ অঙ্গ ভাইৰা, কেশৰ তিলক ৰোপণ কৰিছিল।

খালি ভৰিৰ ভৰিৰ পৰা আকবৰলৈ গৈছিল আৰু সোণালী ছাতাআগবঢ়াইছিল।

 

জয় বিন্ধ্যেশ্বৰী মাতা ||

 

তলৰ চহৰখন উচ্চ পৰ্বতমন্দিৰনিৰ্মাণ কৰা হৈছিল।

সাৎয়গ ত্ৰেতা কপাৰ মধ্য, কলিউগ ৰাজ সাৱায় ||।

 

জয় বিন্ধ্যেশ্বৰী মাতা ||

 

চানী দীপ নৱেচয়া আৰতি, মোহন ভোগ।

ধ্যানু ভগত মৈয় (তেৰা) গুণ, মনটোৱে আকাংক্ষিত ফল পাইছিল।

 

জয় বিন্ধ্যেশ্বৰী মাতা ||

ARTI IN BENGALI

 

||শ্রী বিন্ধ্যেশ্বরী মাতা জিয়ার আরতি||

 

আমার দেবী পার্বতাসিনী শুনুন, আমি আপনাকে পার করতে সক্ষম হইনি।

পান সুপারি পতাকা নারকেল, আপনাকে দেওয়া

 

জয় বিন্ধ্যাশ্বরী মাতা ||

 

সুভা চোলি তেরে আং ভিরাজাই, জাফরান তিলক।

বেয়ারফুট আকবর গিয়ে তাঁকে একটি সোনার ছাতার প্রস্তাব করলেন।

 

জয় বিন্ধ্যাশ্বরী মাতা ||

 

মন্দিরটি সর্বোচ্চ পর্বতমালায় পরিণত হয়েছিল, নীচে শহরটি প্রতিষ্ঠা করেছিল।

সত্যযুগ ত্রেতা দ্বাপর মাধে, কল্যাগরাজ স্বয়য়া

 

জয় বিন্ধ্যাশ্বরী মাতা ||

 

ধূপের প্রদীপ নৈবেদ্য আরতি, মোহন ভোগ।

ধ্যানু ভগত মাইয়া (তোর) পুণ্যময় গ্রাম, মন খুঁজে পেল কাঙ্ক্ষিত ফল।

 

জয় বিন্ধ্যাশ্বরী মাতা ||

ARTI IN BODO

Bodo and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN DOGRI

Dogri and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN ENGLISH

|| Shri Vindhyeshwari Mata Ji Ki Aarti ||

Sun Meri Devi Parvatvasini, Tera Paar Na Paya |

Pan Supari Dwaja Nariyal , Le Teri Bhent Chadaya ||

 

Jai Vindhyeshwari Mata ||

 

Suwa Choli Tere Ang Virajai , Keshar Tilak Lagaya |

Nange Paanv Akbar Jakar , Sone Ka Chattar Chadhaya ||

 

Jai Vindhyeshwari Mata ||

 

Unche Unche Parvat Bana Devalay , Niche Shahar Basaya |

Satyug Treta Dwapar Madhye , Kalyug Raj Sawaya ||

 

Jai Vindhyeshwari Mata ||

 

 

Dhup Deep Naivedya Aarti , Mohan Bhog Lagaya |

Dhyan Bhagat Maiya (Tera) Gun Gaanve , Man Wanchit Fal Paya ||

 

Jai Vindhyeshwari Mata ||

ARTI IN GUJRATI

|| શ્રી વિંધ્યેશ્વરી માતાજીની આરતી ||

 

મારી દેવી પાર્વતસિનીને સાંભળો, હું તમને પાર કરી શક્યો નથી.

પાન સોપારી ધ્વજ નાળિયેર, તમને ઓફર કરે છે

 

જય વિંધ્યેશ્વરી માતા ||

 

સુવા ચોલી તેરે આંગ વિરાજાય, કેસર તિલક.

બેરફૂટ અકબર ગયા અને તેને સોનાની છત્ર ઓફર કરી.

 

જય વિંધ્યેશ્વરી માતા ||

 

મંદિર સૌથી ઉંચું પર્વત બન્યું, નીચે શહેર સ્થાપ્યું.

સતયુગ ત્રેતા દ્વાપર મધે, કલયુગ રાજ સ્વૈયા

 

જય વિંધ્યેશ્વરી માતા ||

 

ધૂપ દીવો નૈવેદ્ય આરતી, મોહન ભોગ.

ધ્યાનુ ભગત મૈયા (તારું) સદ્ગુણ ગામ છે, મનને ઇચ્છિત ફળ મળ્યું.

 

જય વિંધ્યેશ્વરી માતા ||

ARTI IN HINDI

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN KANNADA

|| ಶ್ರೀ ವಿಂಧ್ಯೇಶ್ವರಿ ಮಾತಾ ಜಿ ಅವರ ಆರತಿ ||

 

ನನ್ನ ದೇವತೆ ಪಾರ್ವತಸಿನಿ ಆಲಿಸಿ, ನಾನು ನಿಮ್ಮನ್ನು ದಾಟಲು ಸಾಧ್ಯವಾಗಿಲ್ಲ.

ಪ್ಯಾನ್ ಬೆಟೆಲ್ ಕಾಯಿ ಧ್ವಜ ತೆಂಗಿನಕಾಯಿ, ನಿಮಗೆ ಅರ್ಪಿಸಲಾಗಿದೆ

 

ಜೈ ವಿಂಧ್ಯೇಶ್ವರಿ ಮಾತಾ ||

 

ಸುವ ಚೋಲಿ ತೇರೆ ಆಂಗ್ ವಿರಾಜೈ, ಕೇಸರಿ ತಿಲಕ್.

ಬರಿಗಾಲಿನ ಅಕ್ಬರ್ ಹೋಗಿ ಅವನಿಗೆ ಚಿನ್ನದ .ತ್ರಿ ಅರ್ಪಿಸಿದ.

 

ಜೈ ವಿಂಧ್ಯೇಶ್ವರಿ ಮಾತಾ ||

 

 

ಈ ದೇವಾಲಯವು ಅತ್ಯುನ್ನತ ಪರ್ವತವಾಯಿತು, ಕೆಳಗೆ ನಗರವನ್ನು ಸ್ಥಾಪಿಸಿತು.

ಸತ್ಯುಗ್ ತ್ರೇತ ದ್ವಾಪರ್ ಮಾಧೆ, ಕಲ್ಯುಗ್ ರಾಜ್ ಸವಾಯಾ

 

ಜೈ ವಿಂಧ್ಯೇಶ್ವರಿ ಮಾತಾ ||

 

ಧೂಪ ದೀಪ ನೈವೇದ್ಯ ಆರತಿ, ಮೋಹನ್ ಭೋಗ್.

ಧ್ಯಾನು ಭಗತ್ ಮೈಯಾ (ನಿನ್ನ) ಸದ್ಗುಣಶೀಲ ಗ್ರಾಮ, ಮನಸ್ಸು ಅಪೇಕ್ಷಿತ ಫಲವನ್ನು ಕಂಡುಕೊಂಡಿತು.

 

ಜೈ ವಿಂಧ್ಯೇಶ್ವರಿ ಮಾತಾ ||

ARTI IN KASHMIRI

Kashmiri and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN KONKANI

Konkani and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN MAITHILI

Maithili and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN MALAYALAM

|| ശ്രീ വിന്ധ്യേശ്വരി മാതാ ജിയുടെ ആരതി ||

 

പാർവതസിനി ദേവിയെ ശ്രദ്ധിക്കൂ, എനിക്ക് നിങ്ങളെ മറികടക്കാൻ കഴിഞ്ഞിട്ടില്ല.

പാൻ ബീറ്റൽ നട്ട് ഫ്ലാഗ് തേങ്ങ, നിങ്ങൾക്ക് വാഗ്ദാനം ചെയ്യുന്നു

 

ജയ് വിന്ധേശ്വരി മാതാ ||

 

സുവ ചോളി തേരെ ആംഗ് വിരജായി, കുങ്കുമം തിലക്.

നഗ്നപാദ അക്ബർ പോയി ഒരു സ്വർണ്ണ കുട വാഗ്ദാനം ചെയ്തു.

 

ജയ് വിന്ധേശ്വരി മാതാ ||

 

താഴെയുള്ള നഗരം സ്ഥാപിച്ച ഈ ക്ഷേത്രം ഏറ്റവും ഉയരമുള്ള പർവതമായി മാറി.

സത്യുഗ് ത്രേതാ ദ്വാപർ മാധേ, കല്യുഗ് രാജ് സവയ

 

ജയ് വിന്ധേശ്വരി മാതാ ||

 

ധൂപം വിളക്ക് നൈവേദ്യ ആരതി, മോഹൻ ഭോഗ്.

ധ്യാനു ഭഗത് മായ (നിന്റെ) പുണ്യഗ്രാമമാണ്, മനസ്സ് ആവശ്യമുള്ള ഫലം കണ്ടെത്തി.

 

ജയ് വിന്ധേശ്വരി മാതാ ||

ARTI IN MEITEI

Meitei and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN MARATHI

|| श्री विंध्येश्वरी माता जी यांची आरती ||

 

माझी देवी पर्वतासीनी ऐका, मी तुला पार करू शकलो नाही.

पान सुपारीचा ध्वज नारळ, तुम्हाला अर्पण

 

जय विंध्येश्वरी माता ||

 

सुवा चोळी तेरे अंग विराजै, भगवा टिळक।

बेअरफूट अकबर यांनी जाऊन त्याला सोन्याचे छत्र देऊ केले.

 

जय विंध्येश्वरी माता ||

 

मंदिर सर्वात उंच पर्वत बनले, त्याने खाली शहर स्थापित केले.

सतयुग त्रेता द्वापर मधे, कलयुग राज स्वयं

 

जय विंध्येश्वरी माता ||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग.

ध्यानू भगत मैया (तुझे) सद्गुण गाव आहे, मनाला इच्छित फळ सापडले.

 

जय विंध्येश्वरी माता ||

ARTI IN NEPALI

Nepali and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN ODIA

|| ଶ୍ରୀ ବିନ୍ଦେଶ୍ୱରୀ ମାତା ଜୀ ର ଆରତୀ ||

 

ମୋର ଦେବୀ ପାର୍ବତାସିନି ଶୁଣ, ମୁଁ ତୁମକୁ ପାର କରି ପାରିଲି ନାହିଁ |

ତୁମକୁ ଦିଆଯାଇଥିବା ପାନ ବେଟେଲ ନଟ୍ ଫ୍ଲାଗ୍ ନଡ଼ିଆ |

 

ଜୟ ବିନ୍ଦେଶ୍ୱରୀ ମାତା ||

 

ସୁଭା ଚୋଲି ଟେରେ ଆଙ୍ଗ ବିରଜାଇ, ସାଫ୍ରନ୍ ତିଲକ |

ଖାଲି ପାଦ ଆକବର ଯାଇ ତାଙ୍କୁ ଏକ ସୁନା ଛତା ଅର୍ପଣ କଲା |

 

ଜୟ ବିନ୍ଦେଶ୍ୱରୀ ମାତା ||

 

ମନ୍ଦିର ସର୍ବୋଚ୍ଚ ପର୍ବତ ହେଲା, ତଳେ ସହର ପ୍ରତିଷ୍ଠା କଲା |

ସତ୍ୟଗୁ ଟ୍ରେଟା ଦ୍ୱପର୍ ମାଡେ, କାଲୁଗ୍ ରାଜ ସାୱାୟା |

 

ଜୟ ବିନ୍ଦେଶ୍ୱରୀ ମାତା ||

 

ଧୂପ ପ୍ରଦୀପ ନାଭିଡ଼ିଆ ଆରତୀ, ମୋହନ ଭୋଗ |

ଧନୁ ଭଗତ ମାୟା (ତୁମ) ହେଉଛି ଗୁଣାତ୍ମକ ଗ୍ରାମ, ମନ ଇଚ୍ଛାକୃତ ଫଳ ପାଇଲା |

 

ଜୟ ବିନ୍ଦେଶ୍ୱରୀ ମାତା ||

ARTI IN PUNJABI

|| ਸ਼੍ਰੀ ਵਿੰਧੇਸ਼ਵਰੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਆਰਤੀ ||

 

ਮੇਰੀ ਦੇਵੀ ਪਰਵਤਾਸਿਨੀ ਨੂੰ ਸੁਣੋ, ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਪਾਰ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਿਆ.

ਪਾਨ ਸੁਪਾਰੀ ਝੰਡਾ ਨਾਰਿਅਲ, ਤੁਹਾਨੂੰ ਭੇਟ ਕੀਤਾ

 

ਜੈ ਵਿੰਧੇਸ਼ਵਰੀ ਮਾਤਾ ||

 

ਸੁਵਾ ਚੋਲੀ ਤੇਰੇ ਵਿਰਾਜੈ, ਭਗਵਾਂ ਤਿਲਕ।

ਬੇਅਰਫੁੱਟ ਅਕਬਰ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਸਨੂੰ ਸੋਨੇ ਦੀ ਛਤਰੀ ਦੀ ਪੇਸ਼ਕਸ਼ ਕੀਤੀ.

 

ਜੈ ਵਿੰਧੇਸ਼ਵਰੀ ਮਾਤਾ ||

 

ਮੰਦਰ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚਾ ਪਹਾੜ ਬਣ ਗਿਆ, ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਹੇਠਾਂ ਸਥਾਪਤ ਕੀਤਾ.

ਸਤਯੁਗ ਤ੍ਰੇਤਾ ਦੁਆਪਰ ਮਧੇ, ਕਲਯੁਗ ਰਾਜ ਸਵੈਆ

 

ਜੈ ਵਿੰਧੇਸ਼ਵਰੀ ਮਾਤਾ ||

 

ਧੂਪ ਦੀਵੇ ਨਾਵੈਦਿਆ ਆਰਤੀ, ਮੋਹਨ ਭੋਗ।

ਧਿਆਨੁ ਭਗਤ ਮਾਇਆ (ਤੇਰਾ) ਗੁਣਵਾਨ ਪਿੰਡ ਹੈ, ਮਨ ਨੂੰ ਮਨਭਾਉਂਦਾ ਫਲ ਮਿਲਿਆ।

 

ਜੈ ਵਿੰਧੇਸ਼ਵਰੀ ਮਾਤਾ ||

ARTI IN SANSKRIT

Sanskrit and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN SANTALI

Santali and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN SINDHI

Sindhi and Hindi languages are both written using the same script called ‘Devanagari’ . We recommend you to read the original Hindi version of Arti written in Awadhi dialect. 

 

|| श्री विन्ध्येश्वरी माता जी की आरती ||

 

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।

नंगे पांव अकबर जाकर, सोने का छत्र चढ़ाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।

सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

 

धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।

ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावैं, मन वांछित फल पाया||

 

जय विन्ध्येश्वरी माता||

ARTI IN TAMIL

|| ஸ்ரீ விந்தேஸ்வரி மாதா ஜியின் ஆர்த்தி ||

 

என் தேவி பர்வதாசினியைக் கேளுங்கள், என்னால் உன்னைக் கடக்க முடியவில்லை.

பான் வெற்றிலை கொடி தேங்காய், உங்களுக்கு வழங்கப்படுகிறது

 

ஜெய் விந்தேஸ்வரி மாதா ||

 

 

சுவா சோலி தேரே ஆங் விராஜாய், குங்குமப்பூ திலக்.

வெறுங்காலுடன் அக்பர் சென்று அவருக்கு ஒரு தங்க குடையை வழங்கினார்.

 

ஜெய் விந்தேஸ்வரி மாதா ||

 

இந்த கோயில் மிக உயர்ந்த மலையாக மாறியது, கீழே நகரத்தை நிறுவியது.

சத்யுக் திரேதா த்வாபர் மாதே, கல்யுக் ராஜ் சவயா

 

ஜெய் விந்தேஸ்வரி மாதா ||

 

தூப விளக்கு நைவேத்ய ஆர்த்தி, மோகன் போக்.

தியானு பகத் மாயா (உம்) நல்லொழுக்கமுள்ள கிராமம், மனம் விரும்பிய பழத்தைக் கண்டுபிடித்தது.

 

ஜெய் விந்தேஸ்வரி மாதா ||

ARTI IN TELUGU

|| శ్రీ వింధ్యేశ్వరి మాతా జీ యొక్క ఆర్తి ||

 

నా దేవత పర్వతసిని వినండి, నేను నిన్ను దాటలేకపోయాను.

పాన్ బెట్టు గింజ జెండా కొబ్బరి, మీకు అందిస్తారు

 

జై వింధ్యేశ్వరి మాతా ||

 

సువా చోలి తేరే ఆంగ్ విరాజై, కుంకుమ తిలక్.

చెప్పులు లేని అక్బర్ వెళ్లి అతనికి బంగారు గొడుగు ఇచ్చాడు.

 

జై వింధ్యేశ్వరి మాతా ||

 

ఈ ఆలయం ఎత్తైన పర్వతంగా మారింది, క్రింద నగరాన్ని స్థాపించింది.

సత్యగ్ త్రేతా ద్వాపర్ మాధే, కల్యాగ్ రాజ్ సవయ

 

జై వింధ్యేశ్వరి మాతా ||

 

ధూపం దీపం నైవేద్య ఆర్తి, మోహన్ భోగ్.

ధ్యాను భగత్ మైయా (నీ) సద్గుణమైన గ్రామం, మనస్సు కోరుకున్న ఫలాలను కనుగొంది.

 

జై వింధ్యేశ్వరి మాతా ||

ARTI IN URDU

|| شری ونڈھیشوری ماتا جی کی آرتی ||

 

میری دیوی پروتاسینی کو سنو ، میں آپ کو عبور نہیں کرسکا۔

آپ کو پیش کی گئی پان کی سواری پرچم ناریل ،

 

جئے ونڈھیشوری ماتا ||

 

سووا چولی تیری انگ ویرجائی ، زعفران تلک۔

ننگی پاؤں اکبر گئے اور اسے سونے کی چھتری پیش کی۔

 

جئے ونڈھیشوری ماتا ||

 

مندر مندرجہ بالا پہاڑ بن گیا ، نیچے شہر قائم ہوا۔

ستیگ ٹریٹا دوپر مادھے ، کلیوگ راج سوایا

 

جئے ونڈھیشوری ماتا ||

 

بخور چراغ نویدیا آرتی ، موہن بھاگ۔

دھیانو بھگت مائیہ (تیرا) نیک گاؤں ہے ، ذہن کو مطلوبہ پھل مل گیا۔

 

جئے ونڈھیشوری ماتا ||

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